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अभी जीतने भी डिवाइस इंटरनेट से कनेक्ट हो रहे है उन्हे इंटरनेट सेवा देने वाली कंपनी से एक नंबर मिलता है जिसे आईपी अड्रेस कहा जाता है।
ये अड्रेस आपकी जगह के अनुसार बदलता रहता है। जैसे अगर मै आपने जिओ का इंटरनेट चालू करता हूँ तो उसके अनुसार मेरा आईपी अड्रेस नागपूर का दिखाएगा और मेरा आईपी अड्रेस ११९ से शुरू होगा। और अगर मै घर के वाईफाई से कनेक्ट करता हूँ तो मेरी लोकैशन पुणे की दिखाएगा और आईपी अड्रेस १०६ से शुरू होगा।
इस प्रकार हमे आईपी अड्रेस मिलता है। वैसे ही हर वेबसाईट को भी आईपी अड्रेस मिलता है। जैसे मेरी वेबसाईट का आईपी अड्रेस १७२ से शुरू होता है ऐसा एक आईपी अड्रेस हर वेबसाईट को मिलता है।
DNS क्या है?
DNS का फूल फॉर्म डोमेन नेम सिस्टम ऐसा है। ये पूरे इंटरनेट के लिए एक कान्टैक्ट की तरह है। जैसे अगर आपको किसी व्यक्ती का नंबर देखना है तो कान्टैक्ट में जाकर उसका नाम टाइप करके उसका नंबर देख सकते है। और उससे बोलने के लिए वो नंबर डायल करेंगे। ऐसा ही कुछ ब्राउजर और वेबसाईट के साथ होता है। जैसे अगर आपने cyberbandhu.in ऐसा सर्च किया तो ब्राउजर DNS की मदद से वेबसाईट से जुड़ी आईपी अड्रेस ढूंढेगा और फिर आपको वो वेबसाईट दिखाएगा। ब्राउजर को ये आईपी अड्रेस ही समझ में आते है इनके नाम तो हमारे लिए बने है।
अगर आपने कुछ भी बदलाव नहीं कीये है तो तो आप जिस कंपनी का इंटरनेट इस्तेमाल करते है उनका DNS इस्तेमाल कर रहे है। जैसे जिओ या फिर वाईफाई कंपनी। इनके DNS की मदद से ही ब्राउजर वेबसाईट की आईपी अड्रेस हासिल करता है और वेबसाईट दिखाता है।
एक उदाहरण बताता हूँ – २०२० में टिकटोक पर भारत में बंदी लगाई थी और कुछ समय बाद पबजी पर भी बंदी लगाई थी। ऐसे में कुछ समय के लिए एयरटेल के नेटवर्क पर पबजी चल रहा था इसका कारण एयरटेल ने उनके DNS सर्वर में पबजी को ब्लॉक नहीं किया था। कुछ लोग cloudflare कंपनी का 1.1.1.1 इसका इस्तेमाल करके पबजी खेल रहे थे। मतलब ब्लॉक की हुई वेबसाईट को आप DNS बदल कर इस्तेमाल कर सकते है।
DNS कैशिंग
DNS कैशिंग में आपने हाल ही में जिस वेबसाईट को विजिट किया है उसका आईपी अड्रेस आपके ब्राउजर में या डिवाइस में सेव्ह किया जाता है। इससे हर बार नई रीक्वेस्ट सर्वर को भेजी नहीं जाती और आप ज्यादा तेजी से वेबसाईट को विज़िट कर सकते है।
ब्राऊजर DNS कॅशिंग= इस प्रकार में हाल मे विज़िट की हुई वेबसाईट का आईपी अड्रेस आपके ब्राउजर (क्रोम, फायरफॉक्स, सफारी, मायक्रोसॉफ्ट एज) में सेव्ह किया जाता है।
ऑपरेटिंग सिस्टम लेवल कॅशिंग- इस प्रकार में आपके ऑपरेटिंग सिस्टम में (लिनक्स, विंडोज, अँन्ड्रॉईड, मॅक ओएस, आयओएस) वेबसाईट के आईपी अड्रेस सेव्ह कीये जाते है।
DNS काम कैसे करता है?
एक उदाहरण की मदद से बताता हूँ की ये काम कैसे करता है। अगर आपको cyberbandhu.in इस वेबसाईट को विज़िट करना है तो ब्राउजर को इसका आईपी अड्रेस ढूँढना पड़ेगा। इसके लिए डिवाइस ब्राउजर की मदद से DNS सर्वर को विनती करता है मुझे इस वेबसाईट का आईपी अड्रेस बताओ।
ये विनती recursive dns सर्वर या recursive resolver को पूछी जाती है। फिर जिस भी सर्वर के पास cyberbandhu.in का आईपी अड्रेस होगा उसे authoritative name सर्वर कहा जाता है।
पहले dns query के बाद ये सर्च रूट सर्वर के पास चला जाता है। इस रूट सर्वर के पास टॉप लेवल डोमेन की जानकारी होती है। ये टॉप लेवल डोमेन मतलब वेबसाईट का अंतिम भाग होता है जैसे com, in, org आदि। अलग देशों के लिए भी वेबसाईट अलग टॉप लेवल डोमेन का इस्तेमाल करते है। जैसे भारत एक लिए in या co.in का इस्तेमाल किया जाता है। ये रूट सर्वर पूरे दुनिया में फैले होते है और ब्राउजर हमारे नजदीकी सर्वर से जानकारी प्राप्त करता है।
बाद में रूट सर्वर तक पहुँचने के बाद ये विनती टॉप लेवल डोमेन के पास चली जाती है। इस सर्वर के पास सेकंड लेवल डोमेन की जानकारी होती है। हमारे उदाहरण में ये cyberbandhu है। फिर ये विनती डोमेन सर्वर के पास चली जाती है। जो ब्राउजर को आईपी अड्रेस देता है और हमें वेबसाईट ब्राउजर में दिख जाती है। ये सब कुछ काफी काम समय में होता है। बस इंटरनेट थोड़ा फास्ट होना चाहिए।
चार सर्वर
जब भी हम किसी वेबसाईट की लिंक ब्राउजर में टाइप करते है तब वेबसाईट दिखाने के लिए कुल चार सर्वर हमारी सेवा में उपस्थित होते है। इनके नाम कुछ ऐसे है recursive resolver, रूट नेम सर्वर, टॉप लेवल डोमेन नेमसर्वर, authoritative नेमसर्वर
DNS recursor
ये dns recursor पहला स्टेशन है। ये हमारे डिवाइस के और dns नेमसर्वर के बीच में होता है। ये एक पहले जैसे बताया उस तरह ब्राउजर या डिवाइस का कैशै देखता है अगर उसे वहाँ आईपी अड्रेस मिला तो वहीं वेबसाईट दिखा देगा वरना फिर सारी प्रक्रिया दोहराएगा।
रूट नेमसर्वर
ये रूट नेमसर्वर हमे समझ में आए ऐसी भाषा से वेबसाईट के नामों को आईपी अड्रेस में रूपांतरिक करता है। इसके पास कोनसी वेबसाईट किस सर्वर के पास है इसकी जानकारी होती है। फिर ये हमारी request उस सर्वर के पास भेजता है। कुछ कुछ सरकारी काम जैसा लग रहा है इस टेबल से उस टेबल पर। पर ये सब कुछ चंद सेकंड के अंदर होता है। ये सर्वर फिर टॉप लेवल डोमेन सर्वर की लिस्ट देता है। फिर हमारा डिवाइस योग्य टॉप लेवल डोमेन सर्वर के पास चला जाता है।
टॉप लेवल डोमेन सर्वर
आप इस वेबसाईट पर hindi.cyberbandhu.in इस अड्रेस की मदद से आए है पर अगर आपने .in की जगह .com या .org टाइप किया होता तो आप किसी दूसरी वेबसाईट पर ही चले जाते। ऐसी ही सारी वेबसाईट की लिस्ट इस टॉप लेवल डोमेन सर्वर के पास होती है।
Authoritative नेमसर्वर
ये authoritative नेमसर्वर आखिरी पड़ाव है। इसके पास हमे जिस वेबसाईट का आईपी चाहिए होता है उसका आईपी अड्रेस मिल जाएगा।
DNS सर्वर सुरक्षित होते है?
नहीं। अगर आप आपने वाईफाई या सिम से इंटरनेट का इस्तेमाल करते है वो ज्यादा सुरक्षित नहीं होते। क्योंकि आप जिस कंपनी का इंटरनेट इस्तेमाल करते है वो आप किस वेबसाईट पर जा रहे है ये देख सकती है। ऐसा भी कहा जाता है की इनके DNS सर्वर ज्यादा सुरक्षित नहीं होते। अगर वो हैक हो जाते है तो हैकर उसके हिसाब हमें किसी भी वेबसाईट पर रेडीरेक्ट कर सकता है।
DNS vs VPN
जो अच्छे वीपीएन होते है वो खुद के DNS सर्वर का इस्तेमाल करते है। जो फास्ट एवं सुरक्षित होते है। साथ में जो भी DNS रीक्वेस्ट हमारे डिवाइस से जाते है वो एन्क्रिप्ट होकर जाते है। इसका मतलब वो कंपनी हम किस वेबसाईट पर जा रहे है इसके बारें में कुछ जानकारी हासिल नहीं कर पाएगी। इसलिए किसी अच्छी कंपनी का ही वीपीएन इस्तेमाल करें। खास कर अगर खरीद सकते है तो खरीदे।
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DNS के फायदे
इसका इस्तेमाल करना काफी फायदेमंद रहेगा। अगर आप आपने इंटरनेट के कंपनी का dns इस्तेमाल करते है तो वो हमे कोई भी सुरक्षा नहीं देता। आप शायद किसी मलिशस वेबसाईट पर चले जाएंगे तो भी आपको रोकेगी नहीं। मैंने नीचे कुछ फायदे लाइक है।
मॅलीशियस और फिशिंग वेबसाईट से सुरक्षा
एक अच्छा सर्वर आपको फिशिंग और मलिशस वेबसाईट से बचाता है। ये सर्वर आपको उस वेबसाईट पर जाने से पहले ही ब्लॉक कर देता है। अगर आपने गलती से किसी लिंक पर क्लिक कर दिया तो घबराने की जरूरत नहीं। अगर उनके पास इस वेबसाईट जानकारी होगी तो उसी समय ब्लॉक कर देंगे।
गलत टाइपिंग
ऐसा कई बार हुआ होगा की आपने जल्दबाजी में कई बार गलत टाइप किया होगा और किसी दूसरी वेबसाईट पर भी चले गए होंगे और वो वेबसाईट शायद हैकर की भी हो सकती है। ऐसी गलतियों से सर्वर हमें कई बार बचा सकता है।
तेज और सुरक्षित
सिम और वाईफाई कंपनियों से तो ये सुरक्षित तो होते ही है पर उनसे ज्यादा फास्ट भी होते है। इसलिए इनका इस्तेमाल करना फायदेमंद रहेगा।
अनब्लॉक
कुछ वेबसाईट पर हमारे देश में बंदी है। अगर आपको उनका इस्तेमाल करना है तो आप कोई DNS सर्वर की सेवा खरीद कर उसमें से उस वेबसाईट को अनब्लॉक या ब्लॉक कर सकते है। पर अगर आप पब्लिक डोमेन नेम सिस्टम सर्वर का इस्तेमाल करते है जैसे cloudflare या गूगल पब्लिक dns तो आप उसमें बदलाव नहीं कर सकते। उन्होनें जिन वेबसाईट को ब्लॉक किया वहीं ब्लॉक होंगी। जैसे अगर cloudflare ने भारत में टिकटोक को ब्लॉक किया नहीं होगा तो आप इनके सर्वर की मदद से इस वेबसाईट को विज़िट कर सकते है।
DNS के नुकसान
वैसे तो प्राइवेट कंपनियों के सर्वर ज्यादा सुरक्षित होते है। पर अगर आप इनका इस्तेमाल नहीं करते है तो आप पर कई बार साइबर हमले हुए होंगे और आपको पता भी नहीं चला होगा। इन सर्वर पर भी हमले होते रहते है।
Poisoning
जर तुमचा डिवाइस किंवा ब्राऊजर हॅक झाला असेल तर हॅकर तुमच्या DNS कॅशे सोबत छेडछाड करू शकतो. यात तो वेबसाइटचे आयपी अॅड्रेस बदलून स्वतःच्या वेबसाइटचे आयपी अॅड्रेस टाकू शकतो अशाने तुम्ही मॅलीशियस वेबसाइटला बळी पडू शकता.
अगर आपका डिवाइस या ब्राउजर हैक हुआ होगा तो हैकर आपके DNS कैशै के साथ छेड़छाड़ कर सकता है। इसमें वो वेबसाईट के आईपी अड्रेस बदल कर खुद के किसी वेबसाईट का आईपी अड्रेस डाल सकता है। इससे आप मलिशस वेबसाईट शिकार बन सकते है।
हायजॅकिंग
इसमें हैकर किसी सर्वर पर कब्जा कर लेता है और उनके सेटिंब में छेड़छाड़ कर देता है। और आपको मलिशस वेबसाईट पर रेडीरेक्ट कर सकता है।
DNS over HTTPS क्या है?
ये सुरक्षा का तरीका है जिसमें हमारी queries https प्रोटोकॉल की मदद से एन्क्रिप्ट की जाती है। जिससे कोई भी हमरी queries के साथ किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं कर पाएगा।
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